बात कुछ 55 साल पहले की है.. दीवाली के वक़्त जब सभी भाई-बहन बाज़ार से मिट्टी की गुल्लक ले रहे थे, तो छोटे से एस के जिन्दल ने गुल्लक नहीं ख़रीदी.. घर आने पर जब माँ और पिता जी ने पूछा कि आपको पैसे जमा नहीं करने? आप गुल्लक नहीं लाए?
तब उन्होंने कहा - “आप यहीं रुकिए मैं आता हूँ।”
वह अपने साथ ले आए टिन का 16 लीटर वाला डब्बा (पंजाबी में जिसे हम “पीपा” कहते हैं)। ढक्कन में एक छेद कर दिया और डब्बे पर लगा दिया एक छोटा सा ताला.. कहने लगे - “मैंने गुल्लक देखी पर लगा यह तो बहुत जल्दी भर जाएगी, तो मैंने नहीं ली। अब यह टिन का डब्बा ही मेरी गुल्लक है!”
सभी हंसे पर वे नहीं बदले..
लोग कहते हैं कि पैर उतने ही पसारें जितनी चादर हो पर वे कहते थे: चादर ही इतनी बड़ी कर लो कि कितने भी पैर पसारो कोई फ़र्क़ ही ना पड़े।
उन्होंने अपने लिए देखे बड़े-बड़े सपने और करी कड़ी महनत उन सपनों को पाने के लिए.. इसीलिए वह Safex को इन ऊँचाइयों तक ला पाए।
तो? क्या सीखा आपने इस कहानी से?
आपने भी अपने बचपन में कई सपने देखे होंगे.. बनाए हमें अपने इन सपनों का साथी, हम नहीं हँसेंगे आपके बड़े सपनों पर.. हम बनेंगे आपके सहयोगी उन सपनों को पूरा करने में।